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‘कश्मीर की कली’ को देखते ही दिल दे बैठे थे पटौदी....

नई दिल्ली। गुजरे जमाने की अदाकारा शर्मिला टैगोर ने हिंदी फिल्मों में जो मुकाम हासिल किया है, वह कम लोगों को नसीब हुआ है। वर्ष 1959 से 1984 तक रूपहले पर्दे पर शर्मिला के रूप और अदाओं का राज रहा है। वह 1991 से 2010 तक अलग अंदाज में पर्दे पर सक्रिय रहीं। उन्हें बेहतरीन अभिनय के लिए दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और दो बार फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।08dec14811916754_ll
 
अराधना’, ‘अमर प्रेम’, ‘सफर’, ‘कश्मीर की कली’, ‘मौसम’, ‘तलाश’,’वक्त’,’फरार’, ‘आमने-सामने’ जैसी फिल्में शर्मिला के अभिनय की कहानी बयां करती हैं। उन्हें वर्ष 2013 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से नवाजा जा चुका है। शर्मिला भारतीय फिल्मों की सशक्त अभिनेत्री रही हैं। उनका जन्म हैदराबाद में एक हिंदू बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता गितींद्रनाथ टैगोर गुलाम भारत में एक कंपनी में महाप्रबंधक थे। उनकी मां असम से थीं। शर्मिला की नानी नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के भाई द्विजेंद्रनाथ टैगोर की नातिन थीं।
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