समय अपने साथ बदलाव लेकर चलता है. बदलते दौर के साथ हमारे जीवन में भी कई बदलाव आने स्वाभाविक है. इन सब में एक बात अकसर खड़ी हो जाती है कि कौन सा बदलाव सही है और कौन सा बदलाव गलत. इन्हीं बदलावों में से एक बदलाव है, हमारा समय के साथ हाथों की बजाय कांटा, छुरी और चम्मच से खाना खाना.
पुरातन समय से ही हमारे यहां हाथ से खाना खाने का रिवाज रहा है. लेकिन पाश्चात्य सभ्यताओं के सम्पर्क में आने के बाद से ही हम इसे असभ्य मानकर या Unhygeinic मानकर छोड़ते जा रहें हैं. तो इसी पर चर्चा करते हुए हम आपको बताते हैं कि हाथ से खाना खाने के पीछे कितने सॉलिड वाले लोजिक छुपे हैं. फिर आप तय करते रहना क्या सही है और क्या गलत.
1. पंच तत्त्वों का समावेशन
हमारा शरीर मूल रूप से पंच महाभूतों से मिलकर बना हैं-अग्नि, आकाश, जल, हवा और पृथ्वी. उसी तरह देखा जाये तो हमारे द्वारा ग्रहण किये जाने वाले भोजन में भी यह पंच तत्त्व मौजूद होते हैं. जब हम कांटे और चम्मच की बजाय हाथ से खाना खाते हैं, तो एक तरह से पंचतत्त्व से पंचतत्त्व का मेल हो जाता है. जिसके फलस्वरूप हमारे शरीर में उर्ज़ा अपनी सम्पूर्णता और व्यापकता के साथ प्रवेश करती है.