अंधेरे में सोना हमारे लिए क्यों जरूरी है, यह जानने के लिए एक बार पाषाण युग की ओर अग्रसर होते हैं। यदि आपको ज्ञात हो तो उस समय ही नहीं हमेशा से ही इंसान प्राकृतिक लाइट पर ही निर्भर रहा है। दिन में सूरज और रात में चांद। इसका मतलब यह है कि हमारा शरीर रात को कम बिजली का आदी है।
जहां बात दिन में मिल रही सूरज की रोशनी इतनी पर्याप्त है कि अंाखों पर किसी भी तरह का असर नहीं पड़ता। कहने का मतलब साफ है कि हमारे शरीर का एक बायोलाजिकल क्लाक सूरज और चांद की रोशनी से नियंत्रित होता रहा है जो कि इन दिनों कृत्रिम रोशनी के कारण गड़बड़ा रहा है। अपने स्वास्थ्य को नियंत्रित रखने के लिए बायोलाजिकल क्लाक का सही होना और अंधेरे में सोना आवश्यक है।
रोशनी दवा है – रोश्नी को अगर दवा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। लेकिन जैसे कि हर दवा अति में ली जाए तो वह नुकसादेय होती है, ठीक इसी तरह रोशनी पर भी यही नियम लागू होता है। यदि हम रात को कृत्रित रोशनी अपने इर्द-गिर्द जलाए रखते हैं तो इससे हमारे शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे हमारी नींद प्रभावित होती जिस कारण हमारा ब्लड प्रेशर में असामान्य उतार चढ़ाव आ सकता है। दरअसल कृत्रिम रोशनी हमारे मस्तिष्क पर असर डालती है। अतः यह रोशनी रात के समय के लिए सही नहीं है।